भगवान परशुराम थे चिरंजीवी–रविंद्र सिंह(योग आयोग सदस्य छत्तीसगढ़)

बिलासपुर–योग आयोग सदस्य रविंद्र सिंह ने पूरे देश एवम प्रदेश वाशियो को अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती की बधाई एवम शुभकामनाएं देकर बताए की 
अक्षय तृतीया का यह बहुत ही शुभ दिन है।
अक्षय का अर्थ होता है “जो कभी खत्म ना हो” और इसीलिए एसा कहा जाता है, कि अक्षय तृतीया वह तिथि है जिसमें सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता।
आपको बता दे की इस दिन होने वाले कार्य मनुष्य के जीवन को कभी न खत्म होने वाले शुभ फल प्रदान करते हैं. इसलिए यह कहा जाता है, कि इस दिन मनुष्य जीतने भी पुण्य कर्म तथा दान करता है उसे, उसका शुभ फल अधिक मात्रा में
 मिलता है और शुभ फल का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है.
भगवान परशु राम जी को वेदों का ज्ञान अपने पिता से अर्जित किए थे। अस्त्र शस्त्र की शिक्षा उन्होंने स्वयं महादेव से प्राप्त की थी। महादेव ने ही उन्हें फरसा प्रदान किया था। परशुराम जी को पुराणों में चिरंजीवी बताया गया है।
भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि के पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने उन्हें वरदान दिया था. तब जाकर माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का जन्म हुआ था. परशुराम जी महादेव भोलेनाथ के परम भक्त थे. उन्होंने शिवजी की कठोर तपस्या की थी तब शंकर जी ने प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य अस्त्र परशु यानी फरसा दिया था. परशु को धारण करने के बाद ही वह परशुराम कहलाए. भगवान परशुराम को चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था. उनका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों काल में होता है. उन्होंने ही श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था और महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था.

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